चाणक्य नीति के अनुसार ऐसे घर में रहने वाले की मृत्यु पर संदेह नहीं है।

चाणक्य नीति के अनुसार घर के मालिक को इन चारों से हमेशा मौत का खतरा बना रहता है।

आचार्य चाणक्य ने chanakya niti के प्रथम अध्याय मे यह पांचवा श्लोक लिखा है। जिसका अर्थ यह है की घर के स्वामी को इन चारों से हमेशा सावधान रहना चाहिए और यदि संभव हो तो इनसे पीछा छुड़ा लेने मे हीं भलाई है।

दुष्टा भार्या शठं मित्रं भृत्युश्चोत्तरदायकः ।

ससर्पे च गृहे वासो मृत्युरेव न संशयः ॥

प्रथम- दुष्ट स्त्री:

चाणक्य कहते हैं घर में यदि दुष्ट और दुश्चरित्र पत्नी हो तो उसके पति का जीना, न जीने के बराबर ही है। वह अपमान और लज्जा के बोझ से एक तो वैसे ही मृतक समान है, ऊपर से उसे सदैव यह भय भी बना रहता है कि यह स्त्री अपने स्वार्थ के लिए कहीं उसे विष न दे दे।  क्योंकि ऐसी दुष्ट और पतिता स्त्रियों का कोई पतिव्रत धर्म नहीं होता। उन्हें तो केवल अपनी ऐयाशी से मतलब होता है।

दूसरा- छल करने वाला मित्र::

चाणक्य के अनुसार यदि उस गृहस्वामी का मित्र भी दगाबाज हो, धोखा देने वाला हो तो ऐसा ‘मित्र’ आस्तीन का सांप होता है। वह कभी भी अपने स्वार्थ के लिए गृहस्वामी को ऐसी स्थिति में डाल सकता है, जिससे उबरना उसकी सामर्थ्य से बाहर की बात होती है, तब वह जीते-जी मर जाता है।

तीसरा- वाचाल नौकर:

घर में यदि नौकर बद्जुबान हो, बात-बात में झगड़ा करने वाला हो, पलटकर तीखा जवाब देने वाला हो तो समझ लेना चाहिए कि ऐसा नौकर निश्चित रूप से घर के भेद जानता है और जो घर के भेद जान लेता है। चाणक्य नीति मे स्पष्ट है की वह उसी तरह से घर-बार का विनाश कर सकता है, जैसे विभीषण ने घर के भेद देकर रावण का विनाश करा दिया था, तभी मुहावरा भी बना-‘घर का भेदी लंका ढाये।’ जब घर का ही विनाश हो जाए तो उस घर के गृहस्वामी की स्थिति मरे हुए के ही समान है।

चौथा- सांप:

जिस घर में छिपकर रहने वाले सांप की सम्भावना हो तो गृहस्वामी को निरन्तर यह भय बना रहेगा कि सांप उसे डस न ले। इस प्रकार मृत्यु का भय मृत्यु से भी भयानक होता है। वह शीघ्र ही भय और चिंता से ग्रसित होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है।

निष्कर्ष:

दुष्ट स्त्री, छल करने वाला मित्र, पलटकर तीखा जवाब देने वाला नौकर तथा जिस घर में सांप रहता हो, उस घर में निवास करने वाले गृहस्वामी की मौत में संशय न करें। वह निश्चित मृत्यु को प्राप्त होता है ।

इस प्रकार चाणक्य ने राजा अथवा गृहस्वामी को दुष्टा स्त्री, आस्तीन के सांप मित्र, वाचाल नौकर और घर में छिपे सांपों अर्थात दुश्मनों से सदैव सतर्क रहने की शिक्षा इस श्लोक में दी है।

भाव यह है कि राजा को अपनी पत्नी, नौकर और मित्र का चुनाव बहुत सोच-समझकर करना चाहिए ताकि घर में छिपे दुश्मनों का सिर कुचला जा सके।

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