Sonpur Mela | सदियों पुरानी हमारी समृद्ध संस्कृति का प्रतीक सोनपुर मेला

बिहार के गौरवशाली इतिहास मे जिस मेले की सर्वाधिक चर्चा हुई है वो मेला (Sonpur Mela) आज भी शान से अपने तय समय पर प्रत्येक वर्ष अपने लाव लश्कर लिए अपने स्थान पर आ हीं जाता है ।

यह कोई मामूली मेला नही बल्कि सदियों पुरानी हमारी समृद्ध संस्कृति की एक झलक है, जिसपर हमे गर्व है । सैकड़ो सालों से अपने पुराने अंदाज मे यह मेला अपने यहाँ आने वाले मेहमानों का स्वागत करता रहा है ।

पूरी दुनिया के पर्यटक हमेशा से Sonpur Mela आते रहे हैं और अपनी पुस्तकों मे इस विशाल और अनोखे मेले की चर्चा करते रहे हैं । दुनिया भर की सैकड़ो भाषाओं मे इस मेले को लिखा गया है ।

आइये जानते हैं Sonpur Mela की कुछ खास बातें !

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  • सदियों से यह पूरी दुनिया मे पशुओं की खरीद बिक्री के लिए लगने वाला सबसे बड़ा मेला है।
  • मौर्यवंश के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य (340 ई.पू.- 298 ई.पू.) इसी मेले से अपनी सेना के लिए हाथी-घोड़े हथियार इत्यादि खरीदते थे ।
  • मुगल सम्राट अकबर ने भी अपनी फौज के लिए यहीं से ताकतवर हथियों की ख़रीदारी की थी
  • 1857 विद्रोह के नायक बाबू वीर कुँवर सिंह जी ने भी इसी मेले से हाथी-घोड़े और हथियार लिए थे ।
  • पारंपरिक हथियारों और पशुओं की खरीद बिक्री के लिए यह मेला पूरे विश्व मे मशहूर था ।
  • यहाँ गंडक नदी के तट पर स्थित बाबा हरिहर नाथ मंदिर मे स्थापित हरी (भगवान विष्णु) और हर (भगवान शंकर) की मूर्ति एक साथ है जो पूरी धरती पर कहीं और नहीं है।
  • सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक भी इस मेले मे आ चुके हैं।
  • इतिहासकारों के अनुसार बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध इसी मेले से होते हुए कुशीनगर के लिए गए थे जहां उनका महापरिनिर्वाण हुआ था ।
  • पुराने लेखों के अनुसार भगवान श्री राम ने भी यहाँ आकर बाबा हरिहर नाथ मंदिर मे पूजा की थी ।

Sonpur Mela का परिचय

सोनपुर मेला बिहार के सारण जिले मे हर साल कार्तिक पुर्णिमा (नवम्बर-दिसम्बर) के दिन से शुरू हो जाता है और पूरे एक महीने तक चलता है । यह पूरे एशिया महादेश मे लगने वाला सबसे बड़ा पशु मेला है ।

बिहार की राजधानी पटना से 25 किलोमीटर दूर यह मेला पशु मेले के नाम से जाना जाता है । 5 से 6 किलोमीटर क्षेत्र मे फैले इस मेले मे सरकारी और निजी स्टॉल सह प्रदर्शनी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता रहता है । एक समय मे इस मेले मे मध्य एशिया के कारोबारी खरीद-बिक्री के लिए आते थे ।

इस मेले के बारे मे एक बात बहुत मशहूर थी की यहाँ सुई से लेकर हाथी तक मिल जाएगा । यह मेला औरंगजेब के शासनकाल मे बहुत प्रसिद्ध हुआ जब यहाँ हथियों का व्यापार हुआ करता था । मुगल शासकों की सेना के लिए यह मेला बहुत महत्वपूर्ण रहा ।

पशुओं की खरीद-बिक्री के आलावा पर्यटक पूरे बिहार के सांस्कृतिक पहलुओं के दर्शन एक हीं स्थान पर कर पाते हैं । यहाँ अनेकों स्टॉल पर कपड़े, हस्तशिल्प के सामान, ग्रामीण उपयोग की वस्तुएँ, फर्नीचर, हस्तनिर्मित आभूषण, पारंपरिक खिलौने, काठ, स्टील एवं पीतल के बने बर्तन आदि बिकते हैं ।

मेले में सैकड़ों दुकानें सजी रहती हैं और लाखों लोग इस मेले मे ख़रीदारी करने आते हैं । तमाम बड़ी कंपनियों के लिए दूर-दूर तक अपने प्रॉडक्ट को पहुंचाने के लिए यह एक अच्छा अवसर होता है, इसीलिए इस मेले में बहुत सारी राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय कंपनियाँ यहाँ स्टॉल लगा कर अपने प्रॉडक्ट का विज्ञापन करती हैं ।

सरकार के लिए भी Sonpur Mela अपने संदेशों/योजनाओं को दूर-दराज के क्षेत्रों तक पहुंचाने का अच्छा माध्यम है।  इसीलिए सरकारी स्टॉल भी यहाँ भारी मात्रा मे बनाए जाते हैं ।

आकर्षण का केंद्र भाग्य बताने वाले तोंते इस मेले मे अभी भी दिखाई देते हैं । ये तोंते भाग्य बताने वाले पर्चे को निकालता है और उसका मालिक पर्चे को पढ़कर ग्राहक को उसका भविष्य बताता है ।

गज ग्राह

मेले के प्रवेशद्वार पर गज-ग्राह (हाथी और मगरमच्छ) की प्रतिमा लगी है जो एक पौराणिक कथा पर आधारित है । कथा यह है की प्रतिदिन एक हाथी गंडक मे स्नान करने आता था।  एक दिन मगरमच्छ के रूप मे गंधार्व ने हाथी के पैर को अपने मुँह मे जकड़ लिया। हाथी ने बहुत प्रयास किया पर वह अपने पैर को छुड़ा नहीं पाया। उधर मगरमच्छ धीरे-धीरे हाथी को पानी के अंदर खीचने लगा । अपने प्राणों को संकट मे पड़ा देख गजराज ने भगवान विष्णु से अपने प्राणों की रक्षा के लिए प्रार्थना की। गजराज की प्रार्थना सुनकर भगवान विष्णु ने प्रकट होकर अपने सुदर्शन चक्र से मगरमच्छ का संहार करके गजराज के प्राणों की रक्षा की और मगरमच्छ को शाप से मुक्त किया।

नवीनता

शाम ढलते हीं पूरा मेला रोशनी मे सराबोर हो जाता है । कुछ दशक पहले तक इस मेले मे पूरी रात नाच-नौटंकी का सिलसिला चलता रहता था । लोग दूर-दूर से इस मेले मे नौटंकी-नाच देखने आते थे । लेकिन बदलते समय मे मनोरंजन का तरीका भी बदल गया है । अब नाच-नौटंकी-ड्रामा की जगह थियेटर ने ले ली है ।

शाम होते हीं थियेटरों मे बजने वाले गानों मे ये मेला खो सा जाता है । जहाँ दिन मे सन्नाटा पसरा रहता है वहीं रात मे सबसे ज्यादा भीड़ देखने को मिलती है । रात होते हीं मेले में सन्नाटा और थियेटरों मे रौनक आ जाती है ।

अभी भी पूरे भारत के व्यवसायी इस मेले मे अपनी वस्तुएं बेचने आते हैं । अगर आप हस्तशिल्प के शौक़ीन हैं तो इस मेले में जरूर जाइए यहाँ आपको बिहार और पूरे भारत के हस्तशिल्पों के एक से बढ़कर एक नमूने देखने को मिलेंगे ।

Sonpur Mela और हरिहरनाथ मंदिर

मेले में घूमने के पहले श्रद्धालु सर्वप्रथम गंडक नदी में पवित्र स्नान कर हरिहरनाथ मंदिर मे पूजा अर्चना करते हैं । मान्यता यह है की भगवान श्रीराम ने यहाँ सर्वप्रथम मंदिर का निर्माण किया था, जब वे माता सीता के स्वयंवर मे हिस्सा लेने राजा जनक के दरबार मे जा रहे थे ।

वर्तमान मे बने मंदिर के निर्माण के विषय मे इतिहासकारों का मत स्पष्ट नहीं है, लेकिन इस मंदिर का जीर्णोद्धार राजा मान सिंह ने करवाया था । कहा ये भी जाता है की वर्तमान मंदिर का निर्माण राजा रामनारायण ने मुगलकाल मे किया था, जो एक प्रभावशाली वयक्ति माने जाते थे ।

अन्य प्रसिद्ध मंदिरों की तरह हीं इस मंदिर में अनेक देवी देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर हैं । इन पवित्र मंदिरों में पूजा अर्चना के बाद लोग विशाल मेला क्षेत्र में घूम कर मेला का आनन्द उठाते हैं।

आवागमन

राजधानी पटना से यह मात्र 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । गंगा नदी पर बने महात्मा गाँधी सेतु और जे.पी. सेतु सोनपुर को पटना से जोड़ते हैं । अब तो रेलवे (दिघा-सोनपुर रेल-रोड) के बन जाने से यहाँ ट्रेन और गाड़ी के द्वारा भी सुगमता से पहुँचा जा सकता है ।

Sonpur Mela मे जाने के लिए हाजीपुर से कई वाहन उपलब्ध हैं । सोनपुर मेला रेलवे स्टेशन से मात्र एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । यहाँ ठहरने के लिए सोनपुर रेलवे स्टेशन के आस-पास कई धर्मशाला एवं गेस्ट हाउस मौजूद हैं ।

बिहार का एकमात्र नेशनल पार्क  – वाल्मीकि टाईगर रिज़र्व जाने के लिए सोनपुर रेलवे स्टेशन से कई ट्रेन उपलब्ध हैं ।

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