चाणक्य नीति- सुखी जीवन चाहिए तो ये तीन काम फौरन छोड़ दो।

आचार्य चाणक्य ने चाणक्य नीति के प्रथम अध्याय के चौथे श्लोक मे सुखी जीवन की कामना करने वाले को ये तीन काम नहीं करने की सलाह दी है।

इन कार्यों को करने से कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता, उसे दु:ख हीं भोगने पड़ते हैं। 

मूर्ख शिष्योपदेशेन दुष्टस्त्रीभरणेन च।

दुःखितैः सम्प्रयोगेण पण्डितोऽप्यवसीदति ॥

मूर्ख छात्रों को पढ़ाने तथा दुष्ट स्त्री के पालन-पोषण से और दुःखियों के साथ संबंध रखने से, बुद्धिमान व्यक्ति भी दुःखी होता है। तात्पर्य यह कि मूर्ख शिष्य को कभी भी उचित उपदेश नहीं देना चाहिए, पतित आचरण वाली स्त्री की संगति करना तथा दुःखी मनुष्यों के साथ समागम करने से विद्वान तथा भले व्यक्ति को दुःख ही उठाना पड़ता है।

वास्तव में शिक्षा उसी व्यक्ति को देनी चाहिए जो सुपात्र हो। जो व्यक्ति बताई गई बात को न समझे, उसे परामर्श (शिक्षा) देने से कोई लाभ नहीं। मूर्ख व्यक्ति को शिक्षा देकर समय ही नष्ट किया जाता है।

इसी तरह पतिता स्त्री का भरण-पोषण अथवा उसकी संगति करके विद्वान व्यक्ति की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है, उसका अपमान हो सकता। यही बात दु:खी व्यक्ति के साथ संबंध रखने की है

दुःखी व्यक्ति हर पल अपना ही रोना रोता रहता है। इससे विद्वान व्यक्ति की साधना और एकाग्रता भंग हो जाती है। एकाग्रता भंग होना अथवा साधना में व्यवधान पड़ना बुद्धिमान व्यक्ति को बहुत कचोटता है।

आचार्य चाणक्य द्वारा लिखी हुई ये बातें आज भी उतनी हीं कारगर हैं जितनी तब थीं। इनका अनुसरण करके अपनी अच्छाई और बुराई को पता लगाया जा सकता है।

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