Patna Museum :
यह संग्रहालय बिहार राज्य का पहला संग्रहालय है जिसका निर्माण 1917 में ब्रिटिश राज्य के दौरान हुआ था। इसे ‘जादूघर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह पटना शहर के बुद्ध मार्ग पर स्थित है। इसका निर्माण मुगल-राजपूत शैली में किया गया है।
इस भवन के केंद्र में सुंदर छतरी, चारों कोनों पर गुंबद और झरोखा शैली की खिड़कियां इसे विशिष्ट बनाती हैं। पटना का संग्रहालय ऐतिहासिक रूप से काफ़ी महत्वपूर्ण है। यहाँ पर हिन्दू तथा बौद्ध धर्म की कई निशानियाँ सरंक्षित हैं।
Patna Museum का प्रांगण
इसका प्रांगण अत्यंत सुन्दर है । प्रवेश द्वार के पास ब्रिटिश काल के तोप आगन्तुकों का ध्यान आकर्षित करते हैं। पूरा कैंपस कलात्मक और ऐतिहासिक वस्तुओं से सुसज्जित है।
लगभग 20 करोड़ वर्ष पुराने पेड़ के तने का अवशेष, 16 मीटर लंबे तने का अवशेष, मौर्य और गुप्त काल की पत्थर और लोहे की बनी हुई मूर्तियाँ, टेराकॉटा, महात्मा बुद्ध, शक, कुषाण का राख, भगवान बुद्ध की अस्थियाँ तथा दीदारगंज, पटना सिटी से प्राप्त यक्षिणी की मूर्ति यहाँ की विशेष धरोहरों में से एक है।
1764 के बाद की धरोहरों को Patna Museum में रखा जाता हैं। उससे पहलें की धरोहरें अब बिहार म्यूजियम में भेज दी जा रही हैं।
इन धरोहरों में से एक 2300 साल पुरानी दीदारगंज की यक्षिणी की मूर्ति भी है जो अब बिहार म्यूजियम में रखी गई है।
इतिहास:
1912 में बिहार और बंगाल के अलग होने पर इस राज्य की ऐतिहासिक वस्तुओं को सरंक्षित रखने के लिए पटना संग्रहालय की स्थापना की गई थी।
तत्कालीन गवर्नर चार्ल्स एस बेली की अध्यक्षता में इस संग्रहालय को स्थापित करने का प्रस्ताव रखा गया था
जिसे सर्वसम्मति से पारित किया गया था। 20 जनवरी 1915 को तत्कालीन गवर्नमेंट हाउस इस संग्रहालय की स्थापना की गई थी।
इसे बिहार और उड़ीसा प्रांत के पहले संग्रहालय के रूप में बिहार और उड़ीसा के तत्कालीन गवर्नर सर ह्यूग लैन्सडाउन स्टीफेंसन द्वारा 7 मार्च 1929 में खोला गया था।
संग्रह:
इस संग्रहालय में दुर्लभ वस्तुओं का अतुलनीय संग्रह है जिसमें नव पाषाणकालीन पुरावशेषों और चित्र, पांडुलिपियां , पत्थर और खनिज, तोप और दुर्लभ सिक्के, शीशे की कलाकृतियां शामिल है।
वैशाली में लिच्छवियों द्वारा भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद बनवाए गए प्राचीनतम मिट्टी के स्तूप से प्राप्त बुद्ध के दुर्लभ अस्थि अवशेष वाली कलश मंजूषा और अत्यधिक पुराने चीड़ के एक वृक्ष का जीवाश्म भी यहां पर है।
गंगा नदी के तट पर 1917 में खोजी गई एक दीदारगंज यक्षी प्रतिमा, इस संग्रहालय की सबसे मूल्यवान वस्तु थी पर इसे अब बिहार म्यूजियम में स्थान्तरित कर दिया गया है।
गुलाम रसूल द्वारा 1917 में दीदारगंज में इस मूर्ति को ढूंढा गया था जहाँ ग्रामीण नदी के किनारे मिट्टी में डूबी हुई मूर्ति के पिछले भाग का उपयोग कपड़े धोने के लिए करते थे।
यह मूर्ति 5 फुट 2 इंच की है। ऐसा माना जाता है की यह मूर्ति 2300 साल पुरानी है।
से केवल एक ही रेतीले पत्थर से तराश कर बनाया गया है। इसे ‘बिहार की मोनालिसा’ भी कहा जाता है।
राहुल सांकृत्यायन जिन्हे महापंडित की उपाधि से संबोधित किया जाता है, हिन्दी के महान साहित्यकार थे उन्होंने लगभग 250 दुर्लभ पांडुलिपियों सहित कई पुस्तकों एवं शोध ग्रंथों को संरक्षण के लिए इस संग्रहालय को दान कर दिया था।
ये सभी दुर्लभ वस्तुएं इस संग्रहालय को बहुत महत्वपूर्ण बनाती है।
- पटना संग्रहालय एंट्री फी: Patna Museum में एंट्री फी मात्र 15 रुपये है जो की बहुत ही कम है।
- पटना संग्रहालय समय: Patna Museum मंगलवार से रविवार सुबह 10:30 बजे से संध्या 5 बजे तक।
- साप्ताहिक अवकाश : प्रत्येक सोमवार को Patna Museum बंद रहता है।
- यह संग्रहालय कहाँ स्थित है : Patna Museum पटना जंक्शन रेलवे स्टेशन से मात्र 2 किलोमीटर दूर बुद्ध मार्ग पर कोतवाली थाना के निकट स्थित है । पटना के डाकबंगला चौराहे से यह 10 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है।