Bihar Museum | बिहार म्यूजियम
बिहार राज्य का नाम लेते ही यहाँ की राजधानी पटना और यहाँ पर स्थित विश्व प्रसिद्ध Bihar Museum की याद आ जाती है। वैसे तो यहाँ पटना संग्रहालय बहुत पहले से मौजूद है, फिर भी इतने बड़े संग्रहालय का निर्माण सिर्फ इस राज्य के लिए हीं नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए गौरव की बात है । तो आइये आज हम इस अनमोल संरचना की यात्रा करके इसके बारे में थोड़ा और जान लेते हैं।
पटना इतिहास की अनगिनत कहानियों से समृद्ध लगभग 3000 वर्ष पुराना शहर है। इस शहर ने कई शानदार सभ्यताओं का स्वागत किया है। भारत के कई महान शासकों के उत्थान और पतन का साक्षी यह नगर एक समय में पूरे भारतवर्ष मे घटित महान ऐतहासिक घटनाओं का केंद्र रह चुका है । इस नगर की महानता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है की महान सम्राट अशोक के प्रतीक चिन्ह अशोक स्तम्भ को भारत के प्रतीक चिन्ह के रूप में मान्य है। इसी इतिहास को दुनिया के सामने रखने के लिए एक महान विचार का जन्म हुआ जो आज बिहार म्यूजियम के रूप में हमारे सामने है ।
बिहार म्यूजियम की ख्याति अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक फैली हुई है। जब भी विश्व में अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालयों की बात की जाती है तो उन सात संग्रहालयों में बिहार के बिहार म्यूजियम की बात अवश्य की जाती है। तो चलिये आज आपको बिहार म्यूजियम की सैर करवाते हैं ।
Bihar Museum की तुलना लंदन की टेट ब्रिटेन मिल बैंक म्यूजियम, सिडनी का गैलरी ऑफ न्यू साउथ वेल्स, कनाडा का कनाडियम म्यूजियम फार ह्यूमन राइटस, फ्रांस का लयूबर लेंस, पस-डे- कलाइस और अबूधाबी के द जायद नेशनल म्यूजियम से की जाती है। इससे हर भारतीय, विशेष रूप से बिहार के लोग अत्याधिक गौरवान्वित महसूस करते हैं। यह अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय बिहार की राजधानी पटना के जवाहर लाल नेहरू मार्ग (बेली रोड) पर स्थित है ।
बिहार म्यूजियम का परिचय | Introduction to Bihar Museum
बिहार म्यूजियम जो की पटना में स्थित कई अन्य संग्रहालयों में से एक हैं अपनी वास्तु-कला के लिए विश्वप्रसिद्ध है। इसे बिहार राज्य की ऐतिहासिक धरोहरों को संभालने और बिहार की समृद्ध विरासत, ऐतिहासिक स्थलों और महान संस्कृति को पूरी दुनिया के सामने रखने के उद्देश्य से बनाया गया है।
बिहार म्यूजियम की झलक | Glimpses of Bihar Museum
बिहार म्यूजियम के निर्माण से इस क्षेत्र के गौरवशाली इतिहास को विश्वपटल पर लाने की अति-महत्त्वाकांक्षी योजना साकार हो गई। अगस्त 2015 में ‘बच्चों के संग्रहालय’, मुख्य प्रवेश क्षेत्र और एक अभिविन्यास थियेटर और अक्टूबर 2017 में शेष दीर्घाओं को आम जनता के लिए खोल दिया गया। बिहार म्यूजियम अपनी पर्यावरण-हितैषी संरचना के कारण कई पुरस्कार जीत चुका है। यह म्यूजियम हमेशा देशी-विदेशी पर्यटकों से भरा रहता है। राज्य के पारंपरिक विवाह का चित्रण से लेकर छठ पूजा का विवरण, गांधी से जुड़ी पेंटिंग व म्यूजियम का इतिहास देखने को मिलता है। म्यूजियम में रखा हुआ सम्राट चंद्रगुप्त का सिंहासन भी लोगों के लिए खास आकर्षण का केंद्र है।
बिहार म्यूजियम के बारे में | About Bihar Museum
भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ अक्टूबर 2017 में, बिहार म्यूजियम का भ्रमण किया था। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने म्यूजियम की बहुत तारीफ की और कहा कि-
“श्रद्धा दर्शन को प्रेरित करती है। जिज्ञासा प्रदर्शन को प्रेरित करती है। इतिहास, संस्कृति की महान विरासत को एक्सपीरियेंस करने का उत्तम स्थल है। अभिनंदन।”
प्रधान मंत्री को दीदारगंज की यक्षिणी की प्रतिमा भी बहुत पसंद आई। इसके अलावा राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने भी बिहार म्यूजियम का दौरा किया है और कहा है की-
‘बिहार संग्रहालय अद्भुत व अभूतपूर्व है। अनेक काल की कृतियां बहुत ही वैज्ञानिक तरीके से दर्शायी गई हैं। इसे देखकर भारत के स्वर्णयुग का पूरा दर्शन हो जाता है। इसकी इमारत भी अकल्पनीय सुन्दर और बेजोड़ है। जो कोई इसे देखेगा, बार-बार देखना चाहेगा।
बिहार म्यूजियम का निर्माण | Construction of Bihar Museum
यह म्यूजियम बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार की अति-महत्वाकांक्षी परियोजना थी जो अब पूर्ण हो गई है। इसका निर्माण 498 करोड़ (78 मिलियन अमेरिकी डॉलर) के अनुमानित बजट के साथ अक्टूबर 2013 में शुरू किया गया था। प्रारंभ में इसे 25,000 वर्ग मीटर के क्षेत्र में, “G+1” सरंचना और छोटे से भाग को “G+4” सरंचना के साथ बनाए जाने की योजना थी।
वर्तमान में यह 5.6-हेक्टेयर में फैली छह मंजिला इमारत है, जिसका निर्माण क्षेत्र 24,000 वर्ग मीटर में फैला हुया है। बिहार म्यूजियम के वास्तुशिल्प को जापान के माकी एंड एसोसिएट्स और मुंबई के ओपोलिस आर्किटेक्ट्स ने बनाया है। इस परियोजना के लिए सलाहकार नियुक्त करने के लिए जुलाई 2011 में कनाडा आधारित परामर्श कंपनी लॉर्ड सांस्कृतिक संसाधन को नियुक्त किया गया था।
जनवरी 2012 में जापान की माकी एंड एसोसिएट्स और उसके भारतीय पार्टनर ओपोलिस, मुंबई को परियोजना के प्राथमिक सलाहकार वास्तुकार के रूप में नियुक्त करने की मंजूरी दी गई। कैलिडोस्कोप इंडिया प्राइवेट लिमिटेड जो की प्रसिद्ध फिल्म निर्माता बॉबी बेदी की कंपनी है, ने संग्रहालय के लिए ऑडियोविज़ुअल और फिल्मायी गई सामग्री बनाई है। प्राचीन भारत युग से 1764 तक कलाकृतियों को बिहार संग्रहालय में रखा गया है जिनमें 2300 वर्ष पुरानी दीदारगंज की यक्षी की दुर्लभ मूर्ति भी शामिल है। यह मूर्ति पहले पटना संग्रहालय में हुआ करती थी।
यह 13.9 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। इस म्यूजियम के बनने से पहले यहाँ एल एन मिश्रा इंस्टिट्यूट और हड़ताली मोड़ के बीच में सात पुराने बंगले हुया करते थे, जिसे इस म्यूजियम को बनाने के लिए मार्च 2013 में तोड़ दिया गया था।
विश्वस्तरीय वास्तु-कला तथा पर्यावरण हितैषी भवन
World class Architecture and Environment Friendly Buildings:
Bihar Museum का भवन पूरे विश्व में अपनी अद्भुत वास्तु-कला के लिए प्रसिद्ध है। यह भवन जापान और भारत के नामी वास्तुकारों ने मिलकर बनाया है। इस म्यूजियम के परिसर में मुख्य रूप से 4 क्षेत्र है जिनके नाम क्रमशः प्रवेश, शिक्षा, प्रदर्शनी और प्रशासन है। प्रत्येक पक्ष को परिसर के अंदर ही अलग पर पहचानने योग्य बनाया गया है।
ये सभी पक्ष आपस में खुले प्रकोष्ठों के द्वारा जुड़े हैं। इससे ये सारे पक्ष बाहर के परिदृश्यों से जुड़े रहने के साथ-साथ पूरे वर्ष आरामदायक बने रहतें हैं। इनमें से कुछ प्रकोष्ठों को इस तरह से बनाया गया है जिससे यहाँ पर पहले से लगे पेडो को काटना नहीं पड़ा वे भी यहाँ पर सुरक्षित है और भवन की सुंदरता को बढ़ा रहें हैं। सभी अंतर्निहित खंडों को भवन के विन्यास के हिसाब से सामरिक रूप से व्यवस्थित किया गया है। ये सारे खंड आपस में मठों के द्वारा जुड़े है जो की पारंपरिक जाली आवरण का आधुनिक रूप है।
इन आवरणों से प्राकृतिक रौशनी भवन के अंदर आती है और ये भवन को गर्मी से बचाती भी है। इससे म्यूजियम का विशाल भवन अत्यधिक गर्मी में भी ठंडा रहता है। यहाँ पर जापानी अवधारणा ‘ओकू’ का उपयोग किया गया है जिससे मन को शांति और अध्यात्म की भावना को बल मिलता है।
अधिकांश भवनों की बाहरी सतह शून्य-रखरखाव वाले कॉर्टन स्टील से बनायीं गयी हैं, जिसका भूरा-लाल रंग भवन की बाहरी हरियाली से थोड़ी विषमता के कारण अत्याधिक सुन्दर दिखाई पड़ता है। कोर्टेन स्टील भारतीय ग्रेनाइट और बलुआ पत्थर, टेराकोटा, और ग्लास फिनिश के साथ बहुत ही कलात्मक दिखता है. स्टील के साथ बिहार की स्थानीय वस्तुओं का उपयोग करना एक विलक्षण योजना थी। इससे अंतर्राष्ट्रीय विश्वपटल पर भारत में निर्मित वस्तुओं की ख्याति और बढ़ गयी है।
अपनी पर्यावरण अनुकूलता के लिए बिहार म्यूजियम न केवल भारत में अपितु पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। अपनी पर्यावरण हितैषी भवन डिजाइन के लिए ये कई सम्मान और पुरस्कार भी जीत चुका है। जिनमें से एक गृहा अवार्ड भी है जो इसे वर्ष 2019 में दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में मिला था।
बिहार म्यूजियम का मुख्य भवन पर्यावरण हितैषी है, बेहतरीन डिजाइन, उत्तम गुणवत्ता की निर्माण सामग्री और तकनीक का उपयोग, पर्यावरण, स्वास्थ्य और सुरक्षा का प्रबंधन, बेहतरीन रखरखाव, शानदार अवशिष्ट प्रबंधन इस भवन को भारत का सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण हितैषी भवन बनाता है।
बिहार म्यूजियम की पर्यावरण अनुकूल विशेषताएं (Environmentally Friendly Features of Bihar Museum):
बिहार म्यूजियम को पर्यावरण को ध्यान में रखकर डिजाइन किया गया था। जिससे पर्यावरण को बिना नुकसान पहुचायें इस भवन का संचालन कुशलता से हो रहा है।
- इस म्यूजियम में ऊर्जा संरक्षण का विशेष प्रावधान है जिसमें सौर-ऊर्जा के लिए सोलर पैनल का व्यापक रूप से प्रयोग किया जाता है। विद्युत उपकरणों को उपयोग कम से कम मात्रा में करके प्राकृतिक संसाधनों का अधिक प्रयोग किया गया है।
- भवन की छतों पर अधिक मात्रा में पौधे लगाए गए हैं। पहले से लगे पौधों को बिना काटे इस भवन को निर्मित किया गया है।
- वर्षा जल को संचित करके जल प्रबंधन भी किया जाता है।
- यहाँ से लगभग शून्य मात्रा में अवशिष्ट निकलता है।
- यहाँ का मुख्य भवन हरित भवन का अति उत्तम उदाहरण हैं।
प्रदर्शनी दीर्घाएं (Exhibition Galleries):
बिहार म्यूजियम में सात विभिन्न दीर्घाएं है जिनके नाम क्रमशः अभिविन्यास, बालदीर्घा, इतिहास, दर्शनीय भंडारण, ऐतिहासिक कला, क्षेत्रीय कला और प्रवासी बिहारी है। इन दीर्घाओं में अलग-अलग वस्तुएं प्रदर्शित की गई है।
प्रत्येक दीर्घा बहुत बड़ी है और उनमें से कुछ शिल्पकृतियां तो चौथी शताब्दी की हैं। ये दीर्घाएं जापानी तरीके से बनी है और पर्यावरण के अनुकूल हैं. इसके अलावा ये दीर्घाएं खुले आसमान के नीचे और भी सुन्दर और जीवंत लगती है. यहाँ पर वॉटरफॉल कोर्ट भी है, पीपल आँगन जो की राज्य का प्रतीक भी है, हवादार रंगभूमि तथा निरंजना प्रांगण यहाँ की सुंदरता को चार चाँद लगा देते हैं।
बिहार म्यूजियम का बाहरी भाग कोर्टेन स्टील से बना है जो की भारत की लौह और इस्पात जगत में उच्च स्थान की तरफ इशारा करता है. वास्तव में, कोर्टेन स्टील टेराकोटा और अन्य स्थानीय सामग्रियों के साथ बहुत ही सुन्दर लगता है.
अभिविन्यास दीर्घा (Orientation Gallery):
अभिविन्यास दीर्घा संग्रहालय का अवलोकन देती है और एक थिएटर दीर्घा के अंत में स्थित है। संग्रहालय और उसके संग्रह को प्रस्तुत करने वाली एक संक्षिप्त फिल्म नियमित रूप से सभागार में प्रदर्शित की जाती है। बिहार की समयसीमा और इतिहास पर फिल्म शो भी दिखाए जाते हैं।
बालदीर्घा (Children’s Gallery):
Bihar Museum की इस दीर्घा की कलाकृतियों और वस्तुओं के संग्रह को छह डोमेन में विभाजित किया गया है: ओरिएंटेशन रूम, वन्यजीव अभयारण्य, चंद्रगुप्त मौर्य और शेर शाह सूरी, कला और संस्कृति अनुभाग और अन्वेषण कक्ष। इस कक्ष की विशेषता है की यहाँ पर रखी प्रत्येक वस्तु को बच्चे अपने हाथो से छू सकतें हैं।
यहाँ पर पक्षियों, गैंडे, बाघ, घोड़े और सांपों के जीवन-आकार के मॉडल और गुफाओं की प्रतिकृतियाँ भी है। अन्वेषण कक्ष में बच्चे पुरातात्विक विरासत और पुरातत्वविद कैसे काम करतें हैं यह एनीमेशन फिल्मों जो की इस दीर्घा में दिखाई जाती है से सीख सकतें हैं।
इतिहास दीर्घा (History Gallery):
इस दीर्घा में हड़प्पा सभ्यता से विभिन्न कलाकृतियाँ हैं जिन्हें सिंधु घाटी सभ्यता, दूसरी शहरीकरण और हरयंका के नाम से भी जाना जाता है। इस दीर्घा का पूरा संग्रह हड़प्पा की उन्नत तकनीक और परिष्कृत जीवन शैली का प्रतिनिधित्व करता है।
गैलरी में चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पहली शताब्दी ईसा पूर्व तक की वस्तुएं हैं। इसमें भारत के तीन प्रमुख राजवंशों; मौर्य, नंद और शिशुनाग की वस्तुएँ हैं। गैलरी में विभिन्न प्राचीन स्तूपों के रेलिंग के टुकड़े भी हैं जो बुद्ध और महावीर के जीवन के प्रकरण के साथ जुड़े हुए हैं। दूसरी इतिहास दीर्घा में गुप्त वंश (चौथी-छठी शताब्दी) की कलाकृतियों का प्रदर्शन किया गया है।
क्षेत्रीय दीर्घा (Regional Gallery):
इस दीर्घा में बिहार के शिल्प, लोक संस्कृति और परंपराओं की प्रदर्शनी लगाई गई है।
ऐतिहासिक कला दीर्घा (Historical Art Gallery):
Bihar Museum की इस दीर्घा में 2300 वर्ष पुरानी दीदारगंज की यक्षिणी की दुर्लभ मूर्ति है जो की यहाँ का मुख्य आकर्षण हैं।
प्रवासी बिहारी दीर्घा (Non-resident Bihari Gallery):
इस दीर्घा में उन बिहारी लोगों के योगदान के बारे में बताया गया है की कैसे उन्होंने उन देशों की इतिहास और संस्कृति में अमिट छाप बनाई है जहाँ वे बसे थे। प्रवासी बिहारी दीर्घा में, आगंतुक चित्र देखते हैं और देखते हैं कि 1834 में इंग्लैंड में दासता के उन्मूलन के बाद 19 वीं सदी में बिहारी प्रवास की पहली लहर कैसे आई थी।
19 वीं शताब्दी में, भारतीय गांवों में चरम अभाव और दमनकारी औपनिवेशिक शासन था। कई लोगों को बंदरगाह (जैसे) कलकत्ता और मद्रास शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर किया। इस दीर्घा में मॉरीशस, बांग्लादेश और उससे आगे के देशों में बिहारियों को कैसे स्थानांतरित किया गया, इसका ऐतिहासिक संदर्भ प्रदान किया गया है।
ईस्ट इंडिया कंपनी के शुरुआती दिनों में कुछ को मजदूर के रूप में भर्ती किया गया था और अन्य लोगों ने खुद से ही विदेशी भूमि की खोज की थी। इन मजदूरों को गिरमिटिया मजदूर भी कहा जाता है। इस दीर्घा में दिखाया गया है की कैसे अत्यंत प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते हुए आम बिहारियों ने भारत के इतिहास, संस्कृति और समाज की नियति को प्रभावित किया है।
अन्य दर्शनीय दीर्घाएं (Other Viewable Galleries):
सात मुख्य दीर्घाओं के अलावा यहाँ पर प्रकाशन और शिक्षा अनुभाग, बिक्री काउंटर और अल्पाहार गृह भी है। बिहार म्यूजियम के अंदर ‘द पोटबेली’ नाम से विश्वसनीय बिहारी व्यंजनों के लिए एक रेस्तरां है। जहाँ पर आप वाजिब कीमतों पर बिहार के व्यंजनों जैसे- लिट्टी-चोखा, सत्तू और बैंगन के भरते का आनंद उठा सकतें हैं।
संग्रह (Collection):
बिहार की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कलात्मक एवं सांस्कृतिक विरासतें, भगवान बुद्ध, तीर्थंकर स्वामी महावीर, सम्राट अशोक, चंद्रगुप्त, चाणक्य, शेरशाह सूरी, गुरू गोविन्द सिंह आदि से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों को इस म्यूजियम में रखा गया है।
प्राचीन भारत युग से 1764 तक कलाकृतियों को बिहार संग्रहालय में रखा गया है। बिहार संग्रहालय में क्षेत्रीय दीर्घा में समकालीन कलाकृतियों का एक उत्कृष्ट संग्रह है। राज्य के 25 से अधिक प्रसिद्ध कलाकारों के कार्यों को यहाँ प्रदर्शित किया गया है।
यहाँ पीतल से बने 171 बौद्ध भिक्षु मूर्तियों के संग्रह के साथ भगवान बुद्ध का बड़ा कांस्य का भिक्षा का कटोरा भी है जिसका भार लगभग 600 किलोग्राम वजन है।
पाल काल की कला, कुषाणकालीन कला, मृण मूत्तियों, पुरापाषणिक एवं नवपाषणिक उपकरणों, हड़प्पा कालीन मृदुभाड़ भी यहाँ पर रखे गए हैं। दीदारगंज की यक्षिणी की प्रतिमा, तारा तथा भगवान बुद्ध की विभिन्न प्रतिमाओं को भी यही रखा गया है।
राहुल सांकृत्यायन ने बहुत सारी किताबें पटना संग्रहालय को दान की गई थी जो अब यहाँ पर लाई गई है। ये ऐतिहासिक रूप से अत्याधिक महत्वपूर्ण दस्तावेज हैं। ये तीन अलग-अलग भाषाओं तिब्बती, संस्कृत और नेवारी भाषा में हैं। इनमें लगभग 10,000 पांडुलिपियां हैं जिनमें लगभग 7 लाख पृष्ठ हैं।
दीदारगंज की यक्षिणी की प्रतिमा (Yaksini Statue of Didarganj):
दीदारगंज यक्षिणीबहुत प्रारंभिक भारतीय पत्थर की मूर्तियों का सबसे अच्छा उदाहरण है। इसे तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व का माना जाता था, क्योंकि इसमें मौर्यकालीन कला से जुड़ी मौर्यकालीन पॉलिश थी लेकिन यह बाद की मूर्तियों पर भी पाया जाता है और इसलिए इस प्रतिमा को आकार और अलंकरण के विश्लेषण के आधार पर लगभग दूसरी शताब्दी CE का माना जाता है। यह प्रतिमा 64 इंच लंबी है, जो पत्थर के सिर्फ एक टुकड़े पर उकेरी गयी है।
जीवन-आकार की यह प्रतिमा एक लम्बी, सही अनुपात वाली, मुक्त-खड़ी मूर्तिकला है, जो बलुआ पत्थर से बनी है, जिस पर मौर्यकालीन पॉलिश की गई है। विशेष रूप से फोरलेक के उपचार को कुषाण कहा जाता है। चौरी को दाहिने हाथ में रखा जाता है जबकि बायां हाथ टूटा हुआ है। मूर्ति के निचले वस्त्र कुछ पारदर्शी प्रभाव पैदा करतें है। भारतीय कला की अन्य बड़ी-बड़ी मूर्तियों की तरह, एक प्रमुख देवता के बजाय यह एक निम्न आध्यात्मिक देवी या देवता यक्षिणी का प्रतिनिधित्व करती है।
देवता की सीमाओं पर महिला यक्षी या यक्षिणी, और पुरुष यक्ष, बहुत मामूली व्यक्ति हैं। यक्षी अक्सर पानी और पेड़ों की स्थानीय आत्माएं होती हैं। वे भारतीय लोक धर्म के आंकड़े हैं जिन्हें बौद्ध, हिंदू और जैन धर्म के पंथों में स्वीकार किया गया था। इस प्रतिमा में वे तत्व हैं जो महिला भारतीय धार्मिक मूर्तियों में पाए जाते है जैसे-आभूषण, भारी गोलाकार वक्षस्थल, संकीर्ण कमर और एक सुंदर मुद्रा। ये सारे गुण इस प्रतिमा में पाए जाते हैं।
1917 में गंगा नदी के तट पर दीदारगंज में इस मूर्ति को ढूंढा गया था जहाँ ग्रामीण नदी के किनारे मिट्टी में डूबी हुई मूर्ति के पिछले भाग का उपयोग कपड़े धोने के लिए करते थे।
प्रारम्भ में बची हुयी भारतीय पत्थर की स्मारक मूर्तियों में यक्ष और यक्षिणी की मूर्ति पाया जाना बहुत ही सामान्य विषय था। सांची और भरहुत दोनों के बौद्ध स्तूप स्थल में कई यक्ष और यक्षिणी की मूर्तियाँ पाई गई है। भरहुत में तो उनके नाम के साथ शिलालेख भी हैं।
दीदारगंज यक्षी की गंगा नदी के किनारे, पटना सिटी में क़दम-ए-रसूल मस्जिद के उत्तर-पूर्व में दीदारगंज कदम रसूल के आवास पर, ग्रामीणों द्वारा और विख्यात पुरातत्वविद और इतिहासकार द्वारा 18 अक्टूबर 1917 को खुदाई की गई थी। प्रोफेसर जेएन समददार, पटना संग्रहालय समिति के तत्कालीन अध्यक्ष और बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू के सदस्य, श्री ईएचसी वाल्श और डॉ डीबी स्पूनर, प्रसिद्ध पुरातत्वविद् की मदद से, पटना संग्रहालय, पटना में इस यक्षिणी की आकृति को पुनः प्राप्त किया गया।
एक प्रदर्शनी, द फेस्टिवल ऑफ इंडिया, स्मिथसोनियन इंस्टीट्यूशन के मार्ग में और नेशनल गैलरी ऑफ आर्ट, वाशिंगटन डीसी के यात्रा के दौरान मूर्ति की नाक क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसके कारण इसे फिर से विदेश न भेजने का निर्णय लिया गया।
सम्मान और पुरस्कार:
अपनी विश्वस्तरीय वास्तुशिल्प के लिए बिहार म्यूजियम को बहुत से पुरस्कार और सम्मान मिल चुके हैं।
- दिसंबर 2019 में गृहा (ग्रीन रेटिंग फॉर इंटीग्रेटेड हैबीटेट असेसमेंट) राष्ट्रीय पुरस्कार, बिहार म्यूजियम को फाइव स्टार रेटिंग के साथ दिया गया है। यह सम्मान पाने वाला यह बिहार की पहला सरकारी भवन है। बिहार म्यूजियम ने पूरे 100 प्रतिशत अंक लाकर यह सम्मान पाया है। भवन को सौर ऊर्जा के उपयोग, पर्याप्त मात्र में पौधे, कम मात्रा में या केवल जरूरत के अनुसार बिजली के उपकरणों के प्रयोग की वजह से यह सम्मान दिया गया है। इसके अलावा इस भवन से सिवरेज का निष्कासन न के बराबर होता है।
- 2016 में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (एनएससीआई) द्वारा सुरक्षा पुरस्कार से सम्मानित।
- वर्ष 2016 में डिजाइन श्रेणी में ‘I am Bihar’ पुस्तिका के लेखन के लिए क्यूरियस इनबुक सम्मान मिला था।
- वर्ष 2018 में इंडिया टुडे ग्रुप द्वारा सार्वजनिक कला पहल पुरस्कार अवार्ड से सम्मानित।
- वर्ष 2019 में निर्माण उद्योग परिषद द्वारा सर्वश्रेष्ठ निर्माण के लिए विश्वकर्मा अवार्ड से सम्मानित ।
- जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडिंग और कॉर्पोरेट संचार श्रेणियों में आईएफ डिज़ाइन पुरस्कार से सम्मानित।
उपरोक्त ये वें सम्मान और पुरस्कार हैं जो की बिहार म्यूजियम को विभिन्न श्रेणियों में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मिलें हैं।
बिहार म्यूजियम एंट्री फी (Bihar Museum Patna Ticket Price) :
वयस्कों के लिए एंट्री फी 100 रुपये है; बच्चों के लिए 50 रुपये, विद्यार्थियों को 50 प्रतिशत का अतिरिक्त डिस्काउंट दिया जाता है (डिस्काउंट प्राप्त करने के लिए विद्यार्थी को अपना असली परिचय पत्र प्रस्तुत करना होगा) और विदेशियों के लिए बिहार म्यूजियम टिकट प्राइस 500 रुपये है, जो की देखने में थोड़ा अधिक लग सकता है पर म्यूजियम की दुर्लभ धरोहरों, अद्भुत वास्तु-कला और ज्ञान के सामने कुछ भी नहीं है। बिहार म्यूजियम की अपनी एक वेबसाईट http://biharmuseum.org भी है जहां पर जाकर आप म्यूजियम के बारे में और भी जानकारी प्राप्त कर सकतें है।
बिहार म्यूजियम समय सारिणी (Bihar Museum Patna Timing) :
- बिहार म्यूजियम मंगलवार से रविवार तक दर्शकों के लिए खुला रहता है ।
- सोमवार को साप्ताहिक अवकाश होता है अतः प्रत्येक सोमवार को बिहार म्यूजियम दर्शकों के लिए बंद रहता है ।
- बिहार म्यूजियम में दर्शकों के प्रवेश का समय- प्रातः 10:30 एवं बंद होने का समय संध्या 5 बजे है ।
Bihar Museum से बिहार का इतिहास जुड़ा है ।
बिहार राज्य भारत के उत्तर में स्थित है जिसका बड़ा ही गौरवशाली अतीत रहा है। भगवान महावीर का जन्म-स्थान, गुरु गोविंद सिंह की जन्मस्थली और महात्मा बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति इसी राज्य में हुई थी। यहां विश्व प्रसिद्ध नालंदा, विक्रमशिला और तेलहाड़ा के विश्वविद्यालय भी स्थित थे।
इसका प्राचीन नाम मगध था। बिहार और इसके विभिन्न क्षेत्रों का उल्लेख बहुत से धार्मिक ग्रंथों और महाकाव्यों में है। बिहार राज्य का नाम बौद्ध सन्यासियों के विश्राम करने के स्थान जिसे विहार कहा जाता है के अपभ्रंश रूप बिहार से पड़ा है।
बिहार राज्य की राजधानी पटना है जो की यहाँ का सबसे बड़ा नगर है। प्राचीन काल में इसका नाम पाटलीपुत्र था जो की उस कल में यहाँ के राजा पत्रक ने अपनी रानी पाटली के नाम पर रखा था। पटना शहर की भी ऐतिहासिक महत्ता बहुत अधिक है। यहाँ एक से अधिक शक्तिशाली राजवंश और ज्ञानी हुए हैं। भारतवर्ष के महान शासक सम्राट अशोक की राजधानी पाटलीपुत्र हीं रही है।
शहर का पुराना क्षेत्र, जो की घनी आबादी एवं दिवारों से घिरा है आज पटना सिटी के नाम से जाना जाता है। पश्चिमी भाग यानि पटना सिटी में अगमकुँआ, पादरी की हवेली, शेरशाह की मस्जिद, जलान म्यूजियम, हरमंदिर, पटनदेवी अत्याधिक प्रसिद्ध स्थान हैं । मध्यभाग में गोलघर, पटना संग्रहालय, बिहार संग्रहालय, कुम्हरार के अवशेष, पत्थर की मस्जिद, पटना संग्रहालय तथा पश्चिमी भाग में जैविक उद्यान, सदाकत आश्रम आदि यहां के प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं।
अजातशत्रु, समुद्रगुप्त, चन्द्रगुप्त मौर्य और चन्द्रगुप्त मौर्य द्वितीय जैसे पराक्रमी राजा यही पर हुए हैं। विष्णुशर्मा ने पंचतंत्र और महान कूटनीतिज्ञ कौटिल्य ने यहीं पर अर्थशास्त्र की रचना की थी। पटना शहर शिक्षा, चिकित्सा, और वाणिज्य के क्षेत्र का भी एक प्रमुख केन्द्र है। यह पर बहुत सारे दर्शनीय स्थल हैं। विश्वप्रसिद्ध बिहार म्यूजियम उसी गौरवशाली अतीत के पन्नों को सहेजने की एक बेहतरीन जगह है ।